"कतअ" (उर्दू में "क़तअ" या "क़तआ") उर्दू और फ़ारसी काव्य की एक संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली विधा है।
इसका अर्थ है कटा हुआ हिस्सा — यानी किसी विचार, घटना या भाव को संक्षेप में, सीधी और तीखी शैली में व्यक्त करना।
कतअ प्रायः 2 से 4 अशआर (शेर) का होता है और इसका उद्देश्य किसी संदेश, व्यंग्य, हास्य, या नैतिक शिक्षा को तीक्ष्ण ढंग से प्रस्तुत करना होता है।
यह स्वतंत्र रूप से भी लिखा जा सकता है या किसी बड़े काव्यांश से काटकर भी लिया जा सकता है।
2. कतअ की मुख्य विशेषताएँ – सूची
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संक्षिप्त रूप – प्रायः 2 से 4 शेरों का।
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सीधा संदेश – बिना घुमावदार बातें।
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विषय-विविधता – हास्य, व्यंग्य, प्रेम, दर्शन, सामाजिक टिप्पणी।
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तुकांत व रदीफ़ – ग़ज़ल की तरह, पर कम शेरों में।
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स्वतंत्रता – पूरा भाव स्वतंत्र रूप से व्यक्त होता है।
3. विस्तृत वर्णन
1. संक्षिप्त रूप
कतअ की सबसे बड़ी खूबी इसकी लघुता है। इसमें ज्यादा विस्तार नहीं होता, बल्कि सीधे-सीधे मुद्दे की बात होती है। कम पंक्तियों में असरदार प्रस्तुति ही इसकी ताकत है।
2. सीधा संदेश
ग़ज़ल की तरह इसमें प्रतीकात्मकता ज़रूरी नहीं होती। कतअ का संदेश स्पष्ट और तुरंत समझ आने वाला होना चाहिए, ताकि पाठक या श्रोता तुरंत प्रभावित हो।
3. विषय-विविधता
कतअ किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है —
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हास्य (मजेदार और चुटीली बातें)
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व्यंग्य (राजनीति, समाज, मानव स्वभाव पर कटाक्ष)
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प्रेम (मुलाकात, विरह, याद)
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दर्शन (जीवन, समय, मृत्यु)
4. तुकांत व रदीफ़
कतअ में ग़ज़ल जैसी तुकांत योजना अपनाई जाती है। अगर रदीफ़ और क़ाफ़िया का सही इस्तेमाल हो, तो इसकी लय और प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
5. स्वतंत्रता
कतअ किसी ग़ज़ल या कविता का हिस्सा भी हो सकता है, लेकिन अक्सर इसे स्वतंत्र रचना के रूप में लिखा जाता है। एक अच्छा कतअ पढ़ने के बाद पाठक को लगता है कि बात पूरी तरह कह दी गई है।
उदाहरण (व्यंग्यात्मक कतअ)
किसी के पास समय नहीं मिलने की शिकायत है,
किसी के पास समय है पर करने को कुछ नहीं,
ज़िंदगी की अजीब उलझन है यह दोस्तों,
जिसे समय चाहिए, उसे वक्त मिलता ही नहीं।
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