मुक्त छंद व बद्ध छंद

कविता केवल शब्दों और भावनाओं का मेल नहीं होती, बल्कि यह एक ऐसी कला है जिसमें लय, ताल और संरचना का भी उतना ही महत्व है। कविता की संरचना को निर्धारित करने में छंद का महत्वपूर्ण योगदान होता है। छंद के आधार पर कविताओं को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है — मुक्त छंद और बद्ध छंद। दोनों की अपनी विशिष्टता, सौंदर्य और प्रयोग के अवसर होते हैं। एक सच्चा कवि तभी प्रभावशाली रचनाएँ कर सकता है, जब वह इन दोनों शैलियों को समझकर, परिस्थिति और भाव के अनुसार उनका प्रयोग करना सीखे।

मुक्त छंद (Free Verse)

मुक्त छंद वह शैली है जिसमें कविता किसी निश्चित मात्रा, पंक्ति की लंबाई या तुकांत के नियम से बंधी नहीं होती। इसमें कवि को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता होती है। मुक्त छंद में लय और संगीत होता है, लेकिन वह लय प्राकृतिक और आंतरिक होती है, बाहरी नियमों से बंधी नहीं। उदाहरण के लिए, किसी कवि के मन में प्रकृति की सुंदरता पर लिखने का भाव है, तो वह बिना किसी तुकांत या मात्राओं की गिनती के, सीधे अपने शब्दों के प्रवाह में उसे लिख सकता है।

मुक्त छंद आधुनिक कविता का एक प्रमुख रूप है, क्योंकि इसमें कवि को विचारों को सीधा और सरल तरीके से व्यक्त करने का अवसर मिलता है। इसमें भावनाओं की गहराई, चित्रात्मकता और बिंब का प्रयोग अधिक देखा जाता है। मुक्त छंद की खूबी यह है कि यह गद्य और पद्य के बीच एक पुल का काम करता है — इसमें कविता की संवेदना और गद्य की सहजता दोनों होती हैं।

बद्ध छंद (Metered Verse)

बद्ध छंद वह है जिसमें कविता निश्चित मात्रा, तुकांत, पंक्ति-लंबाई और लय के विशेष नियमों के अनुसार लिखी जाती है। इसमें हर पंक्ति में एक तय मात्रा होती है, और अक्सर पंक्तियों के अंत में तुकांत शब्द आते हैं। बद्ध छंद में रचना करना कवि के लिए तकनीकी दृष्टि से चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि उसे भाव और संरचना दोनों का संतुलन बनाए रखना पड़ता है।

भारतीय काव्य परंपरा में बद्ध छंद का लंबा और गौरवपूर्ण इतिहास है। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य में छंदशास्त्र के विस्तृत नियम मिलते हैं। हिंदी में भी दोहा, चौपाई, रोला, कवित्त, सवैया आदि बद्ध छंदों के लोकप्रिय रूप हैं। उदाहरण के लिए, तुलसीदास की “रामचरितमानस” चौपाई और दोहे में ही रची गई है। बद्ध छंद की सुंदरता उसके लयबद्ध प्रवाह और संगीतमयता में निहित है, जो सुनने वाले को तुरंत आकर्षित कर लेता है।

दोनों का महत्व

मुक्त छंद और बद्ध छंद, दोनों का कविता में अपना-अपना स्थान है। मुक्त छंद भावों को बिना बंधन के उड़ान देता है, जबकि बद्ध छंद उन्हें अनुशासन और परंपरा का सौंदर्य देता है। एक सफल कवि को दोनों का अभ्यास करना चाहिए, ताकि वह परिस्थिति और विषय के अनुसार उपयुक्त शैली चुन सके।

मुक्त छंद में आप अपने विचारों को स्वतंत्रता से उकेर सकते हैं, लेकिन इसमें लय और भावनात्मक प्रवाह का ध्यान रखना जरूरी है, वरना कविता बिखरी हुई लग सकती है। वहीं बद्ध छंद में आपको तुकांत और मात्राओं के नियमों का पालन करना पड़ता है, लेकिन यह नियम ही कविता में गेयता और स्मरणीयता लाते हैं।

अंततः, कविता की आत्मा भावनाओं में होती है, लेकिन उसकी अभिव्यक्ति का रूप — चाहे वह मुक्त हो या बद्ध — उसकी प्रभावशीलता तय करता है। इसलिए, छंद की इन दोनों शैलियों को सीखना और साधना, हर कवि के लिए आवश्यक है।

Post a Comment

0 Comments