कविता का सौंदर्य केवल उसके भावों और विचारों में नहीं, बल्कि उसकी लय, ताल और संगीतमय प्रवाह में भी बसता है। जब कोई कवि अपने शब्दों में ऐसी लय पैदा करता है जो पाठक या श्रोता के हृदय को छू जाए, तो उस जादू के पीछे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है तुकांत शब्दों की। तुकांत शब्द वे होते हैं जिनके अंतिम ध्वनि-खंड समान या मिलते-जुलते हों, जिससे पढ़ते या सुनते समय एक तालमेल और मधुरता का अनुभव होता है। यह केवल कविता की तकनीक नहीं, बल्कि उसकी आत्मा है। जैसे एक गीत बिना सही सुर के अधूरा लगता है, वैसे ही कविता बिना उचित तुकांत के अपनी पूर्णता खो देती है।
तुकांत शब्दों का प्रयोग कविता को सरल, गेय और यादगार बना देता है। एक अच्छा तुकांत न केवल कविता की ध्वनि-सौंदर्यता को बढ़ाता है, बल्कि उसके भावों को और गहराई देता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी पंक्ति का अंत “जीवन” शब्द से हो, और अगली पंक्ति “साधन” या “कारण” पर खत्म हो, तो पाठक को दोनों पंक्तियों में एक जुड़ाव महसूस होता है। इस तरह तुकांत शब्द कविता को एक लयात्मक बंधन में पिरोते हैं, जिससे पाठक शुरू से अंत तक जुड़ा रहता है।
तुकांत के कई प्रकार होते हैं। शुद्ध तुकांत में अंतिम अक्षर और ध्वनि पूरी तरह से समान होती है, जैसे “दिन – बिन – किन – चिन”। यह सबसे मधुर और प्रभावी तुकांत माने जाते हैं। अशुद्ध तुकांत में ध्वनि करीब-करीब समान होती है, लेकिन थोड़ी भिन्नता रहती है, जैसे “सपना – अपना – तपना”। वहीं आंशिक तुकांत में अंतिम दो-तीन अक्षर समान होते हैं, लेकिन उच्चारण या लय में हल्का फर्क होता है, जैसे “जीवन – साधन – कारण”। एक कुशल कवि इन तीनों का उचित प्रयोग परिस्थिति और भाव के अनुसार करता है।
तुकांत शब्दों का ज्ञान केवल कविता की लय के लिए नहीं, बल्कि उसकी स्मरणीयता के लिए भी जरूरी है। इतिहास में जो कविताएँ पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाती रही हैं, उनमें तुकांत का प्रयोग इतना सटीक और सहज था कि वे गानों की तरह याद रह गईं। कबीर, तुलसीदास, रहीम, और निराला जैसे कवियों की रचनाएँ इसका प्रमाण हैं।
तुकांत शब्द खोजने के लिए कवि को निरंतर अभ्यास करना चाहिए। एक तरीका यह है कि हर नए शब्द के साथ उसके तुकांत शब्दों की एक सूची अपने नोट्स में बना लें। पुराने और आधुनिक गीतों को सुनना, कविताएँ पढ़ना और शब्दकोश का उपयोग करना भी इसमें मददगार होता है। समय के साथ यह आदत इतनी मजबूत हो जाती है कि किसी भी विषय पर तुकांत स्वतः दिमाग में आने लगते हैं।
लेकिन तुकांत का चयन करते समय कुछ सावधानियाँ भी जरूरी हैं। केवल ध्वनि समानता पर ध्यान देकर अर्थ को अनदेखा करना कविता को कमजोर कर सकता है। सही तुकांत वही है, जो कविता के भाव और संदर्भ से मेल खाए। जबरदस्ती तुकांत बैठाने की कोशिश करने से कविता कृत्रिम लग सकती है और उसकी भावनात्मक ताकत कम हो सकती है। एक अच्छे कवि के लिए तुकांत चुनना केवल तकनीक नहीं, बल्कि संवेदनशीलता का भी विषय है।
अंततः, तुकांत शब्द कविता को जीवंत बनाते हैं, उसकी आत्मा में वह संगीतमय मिठास भरते हैं जो उसे साधारण से असाधारण बना देती है। तुकांत का सही प्रयोग ही वह चाबी है, जिससे कविता के दरवाज़े पाठक के दिल तक खुलते हैं। इसलिए, अगर आप अपनी कविता को प्रभावशाली और कालजयी बनाना चाहते हैं, तो तुकांत शब्दों का गहरा अध्ययन और निरंतर अभ्यास अपनी लेखन यात्रा का अभिन्न हिस्सा बना लें।
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