ग़ज़ल कैसे लिखें

ग़ज़ल सिर्फ़ शेरों का संग्रह नहीं, बल्कि लय, तुक, भाव और शिल्प का अद्भुत मेल है। इसका जन्म अरबी-फारसी साहित्य से हुआ, लेकिन उर्दू और हिंदी में इसने अपना एक अलग ही स्थान बना लिया है। ग़ज़ल में प्रेम, विरह, दर्शन, राजनीति या जीवन के किसी भी पहलू को बेहद संक्षिप्त और असरदार तरीके से व्यक्त किया जाता है।
ग़ज़ल लिखने के लिए इसकी संरचना, नियम और रचनात्मक सोच को समझना ज़रूरी है।


ग़ज़ल लिखने के चरण – सूची

  1. ग़ज़ल की संरचना समझें

  2. विषय (थीम) चुनें

  3. बह्र (लय / मात्रा पैटर्न) तय करें

  4. रदीफ़ और काफ़िया चुनें

  5. मतला लिखें (पहला शेर)

  6. बीच के शेर रचें

  7. मक़्ता लिखें (अंतिम शेर)

  8. ग़ज़ल को संपादित और परिष्कृत करें


1. ग़ज़ल की संरचना समझें

  • ग़ज़ल शेरों (Couplets) की श्रृंखला होती है, जहाँ हर शेर अपने आप में स्वतंत्र अर्थ रखता है।

  • हर शेर में दो मिसरे (पंक्तियाँ) होते हैं – पहला मिसरा और दूसरा मिसरा।

  • पूरी ग़ज़ल में रदीफ़ और काफ़िया एक जैसे रहते हैं, बह्र समान रहती है।


2. विषय (थीम) चुनें

  • ग़ज़ल किसी भी विषय पर हो सकती है — प्रेम, विरह, दर्शन, समाज, राजनीति, जीवन दर्शन आदि।

  • विषय चुनने से आपको शेरों में भावनात्मक एकरूपता बनाए रखने में मदद मिलती है।

  • उदाहरण: "जुदाई", "मोहब्बत", "ज़िंदगी का संघर्ष"।


3. बह्र (लय / मात्रा पैटर्न) तय करें

  • बह्र ग़ज़ल की लय और संरचना को तय करती है।

  • शुरुआत में छोटी या मध्यम बह्र चुनना आसान होता है।

  • एक ही बह्र पूरी ग़ज़ल में चलनी चाहिए, नहीं तो लय टूट जाएगी।


4. रदीफ़ और काफ़िया चुनें

  • रदीफ़: हर शेर की दूसरी पंक्ति के अंत में आने वाला स्थिर शब्द/वाक्यांश।

  • काफ़िया: रदीफ़ से पहले आने वाले तुकांत शब्द।

  • पहले रदीफ़ चुनें, फिर उससे मेल खाते काफ़िये खोजें।

  • उदाहरण:

    • रदीफ़ = "नहीं आया"

    • काफ़िया = "किया", "गया", "लिया", "पिया"


5. मतला लिखें (पहला शेर)

  • ग़ज़ल का पहला शेर (मतला) दोनों पंक्तियों में रदीफ़ और काफ़िया रखता है।

  • यही पूरी ग़ज़ल की तुकांत शैली तय करता है।

उदाहरण:
तेरे बिना कोई सुकून मुझको नहीं आया
दिल रोता रहा पर तेरा ख़त भी नहीं आया


6. बीच के शेर रचें

  • हर शेर का अपना अलग अर्थ हो सकता है, लेकिन लय और तुक वही रहती है।

  • कोशिश करें कि हर शेर में भाव की गहराई और प्रभाव हो।

  • शेरों में शब्द चयन और अलंकार का ध्यान रखें।


7. मक़्ता लिखें (अंतिम शेर)

  • मक़्ता में अपना तख़ल्लुस (कवि का उपनाम) डालें।

  • यह आपकी पहचान और व्यक्तिगत भावनाओं को दर्शाता है।

उदाहरण:
‘फ़िराक़’ उस बेवफ़ा से क्या शिकवा करे अब
जिसे याद भी हमको कभी नहीं आया


8. ग़ज़ल को संपादित और परिष्कृत करें

  • हर शेर को पढ़कर देखें कि बह्र, रदीफ़, काफ़िया और लय सही है या नहीं।

  • अनावश्यक शब्द हटा दें और भाषा को सुंदर व प्रभावशाली बनाएँ।

  • अभ्यास से आपकी ग़ज़ल में निखार आएगा।


💡 अभ्यास सुझाव:

  • पहले छोटी बह्र में ग़ज़ल लिखना शुरू करें।

  • प्रसिद्ध ग़ज़लगो (जैसे मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, जावेद अख़्तर) की ग़ज़लें पढ़ें।

  • रोज़ाना 1-2 शेर लिखकर लय और तुक का अभ्यास करें।

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