उर्दू और फ़ारसी कविता की दुनिया में “शेर” एक बुनियादी इकाई है। ग़ज़ल, नज़्म या रुबाई जैसी विधाओं में कविता कई शेरों से मिलकर बनती है। एक शेर में केवल दो पंक्तियाँ (मिसरे) होती हैं, लेकिन इन दो पंक्तियों में इतनी गहराई और अर्थ समाए होते हैं कि यह स्वयं में एक संपूर्ण कविता मानी जाती है।
सरल शब्दों में, शेर कविता की वह इकाई है, जिसमें भाव, विचार या अनुभव को मात्र दो पंक्तियों में सटीक और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
2. शेर की संरचना
एक शेर के दो हिस्से होते हैं:
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पहला मिसरा – जिसे मिसरा-ए-ऊला कहते हैं।
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दूसरा मिसरा – जिसे मिसरा-ए-सानी कहते हैं।
दोनों मिसरे मिलकर शेर बनाते हैं। हर मिसरे का वज़्न (छंद) एक जैसा होना चाहिए।
3. शेर की विशेषताएँ
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स्वतंत्रता – हर शेर का अर्थ बाकी शेरों से स्वतंत्र हो सकता है।
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पूर्णता – केवल दो पंक्तियों में पूरा भाव या विचार व्यक्त होना चाहिए।
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लय और तुक – ग़ज़ल के शेर में काफ़िया और रदीफ़ का पालन ज़रूरी होता है।
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गहराई – छोटे होते हुए भी शेर में गहरी संवेदनाएँ, दर्शन या अनुभव व्यक्त होते हैं।
4. उदाहरण
बहुत मुश्किल से होता है चमन में दीदवर पैदा
हज़ारों साल में होती है हवाओं में ख़ुशबू पैदा
यहाँ दो पंक्तियों में ही भाव, लय और गहराई स्पष्ट है।
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