शेर लिखने के मुख्य चरण

शेर लिखना एक कला है जिसमें केवल दो पंक्तियों में गहरी भावनाएँ, विचार और दर्शन को व्यक्त किया जाता है। यह उर्दू व हिंदी कविता की सबसे सटीक और असरदार विधा मानी जाती है। अच्छे शेर के लिए भाषा की मिठास, लय, तुक, और भावों की गहराई ज़रूरी है। ग़ज़ल के हर शेर की तरह, इसमें भी छंद (वज़्न), काफ़िया और रदीफ़ का ध्यान रखना होता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है — दो पंक्तियों में सम्पूर्ण बात कहना।


2. शेर लिखने के मुख्य चरण (सूची)

  1. विषय या भाव चुनना

  2. लय और वज़्न का चयन

  3. काफ़िया और रदीफ़ तय करना

  4. मिसरा-ए-ऊला (पहली पंक्ति) लिखना

  5. मिसरा-ए-सानी (दूसरी पंक्ति) बनाना

  6. भाव और लय की जाँच करना

  7. संशोधन और सुधार


3. विस्तृत विवरण

1. विषय या भाव चुनना
शेर लिखने से पहले यह तय करें कि आप किस भावना या विचार पर लिखना चाहते हैं — प्रेम, विरह, दर्शन, समाज, हास्य, या प्रेरणा। विषय स्पष्ट होगा तो शब्द स्वतः निकलेंगे।
उदाहरण: प्रेम पर शेर, दर्द पर शेर, दोस्ती पर शेर इत्यादि।


2. लय और वज़्न का चयन
उर्दू शेर में वज़्न का मतलब है — पंक्ति में अक्षरों की लंबाई-छोटाई (मात्रा) का संतुलन। वज़्न एक तरह का संगीतात्मक पैमाना है जो शेर को सुनने में मधुर बनाता है। बिना वज़्न के शेर फीका लगता है।


3. काफ़िया और रदीफ़ तय करना

  • काफ़िया: रदीफ़ से पहले आने वाले तुकांत शब्द।

  • रदीफ़: हर शेर के अंत में आने वाला स्थायी शब्द या शब्द समूह।
    उदाहरण:
    अगर रदीफ़ = "है", और काफ़िया = "ग़म", "दम", "कम", तो शेर ऐसे बनेंगे —
    "दिल में बहुत ग़म है"
    "ज़िंदगी में हर दम है"


4. मिसरा-ए-ऊला लिखना
पहली पंक्ति में आप माहौल, समस्या, भावना या दृश्य का संकेत देते हैं, जिससे पाठक या श्रोता का ध्यान खिंचे।


5. मिसरा-ए-सानी बनाना
दूसरी पंक्ति पहली पंक्ति का उत्तर, समाधान, गहराई या मोड़ होती है। यही पंक्ति शेर को प्रभावी बनाती है। अक्सर इसमें भावनात्मक झटका (emotional twist) होता है।


6. भाव और लय की जाँच करना
दोनों पंक्तियों को साथ पढ़ें और देखें कि उनमें संगीतात्मक प्रवाह है या नहीं। भाव अधूरा तो नहीं रह गया? लय टूट तो नहीं रही?


7. संशोधन और सुधार
शेर को कई बार पढ़ें, अनावश्यक शब्द हटाएँ, और सरल लेकिन असरदार शब्द चुनें। एक अच्छा शेर सीधा दिल तक पहुँचता है।


4. उदाहरण शेर (प्रेम विषय)

तेरे बिना ज़िंदगी में क्या रखा है
जैसे गुलशन में बहार नहीं रखा है


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