कतअ लिखना कला और कौशल का संगम है। यह ग़ज़ल की तरह तुकबंदी और लय का पालन करता है, लेकिन लंबाई में छोटा और प्रभाव में तेज़ होता है। एक अच्छा कतअ कुछ ही पंक्तियों में गहरी बात कह देता है—चाहे वह हास्य हो, व्यंग्य, प्रेम, या कोई सामाजिक संदेश। इसे लिखने के लिए शब्द चयन, भाव-संक्षेपण, और अंतिम पंक्ति में प्रभाव पैदा करना सबसे ज़रूरी है। 2. कतअ लिखने के मुख्य चरण – सूची विषय चुनना मुख्य संदेश तय करना रदीफ़ और क़ाफ़िया का निर्धारण छोटे और असरदार शेर गढ़ना अंतिम पंक्ति में प्रभाव डालना संक्षेप और सटीकता बनाए रखना पुनःसंपादन (E…
"कतअ" (उर्दू में "क़तअ" या "क़तआ") उर्दू और फ़ारसी काव्य की एक संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली विधा है। इसका अर्थ है कटा हुआ हिस्सा — यानी किसी विचार, घटना या भाव को संक्षेप में, सीधी और तीखी शैली में व्यक्त करना। कतअ प्रायः 2 से 4 अशआर (शेर) का होता है और इसका उद्देश्य किसी संदेश, व्यंग्य, हास्य, या नैतिक शिक्षा को तीक्ष्ण ढंग से प्रस्तुत करना होता है। यह स्वतंत्र रूप से भी लिखा जा सकता है या किसी बड़े काव्यांश से काटकर भी लिया जा सकता है। 2. कतअ की मुख्य विशेषताएँ – सूची संक्षिप्त रूप – प्रायः 2 से 4 शेरों…
रुबाई काव्य की एक संक्षिप्त और सारगर्भित विधा है, जिसमें केवल चार पंक्तियों में गहरी बात कही जाती है। इसका उद्भव फ़ारसी और अरबी साहित्य से हुआ, लेकिन हिंदी और उर्दू काव्य में भी इसे व्यापक स्थान मिला है। रुबाई की ख़ासियत यह है कि इसमें सीमित शब्दों में भावनाओं और विचारों को इतनी सटीकता से प्रस्तुत किया जाता है कि पाठक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह प्रेम, दर्शन, प्रेरणा, जीवन के अनुभव, व्यंग्य, या आध्यात्मिक विषयों पर लिखी जा सकती है। 2. रुबाई लिखने के चरण – सूची विषय का चयन भाव का निर्धारण तुकांत योजना (AABA पैटर्न) छंद और वज़्न का…
रुबाई उर्दू, फ़ारसी और हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण काव्य-विधा है, जिसमें चार पंक्तियों (चौपाई) के माध्यम से गहन विचार, दर्शन, प्रेम, विरह या जीवन का सार व्यक्त किया जाता है। रुबाई का उद्गम फ़ारसी साहित्य से हुआ और इसे ओमर ख़य्याम जैसे कवियों ने लोकप्रिय बनाया। इसकी ख़ासियत है कि यह छोटी होते हुए भी बेहद असरदार होती है — जैसे शब्दों में मोती पिरोना। 2. संरचना (फ़ॉर्मेट) कुल 4 पंक्तियाँ होती हैं। तुकांत का क्रम सामान्यतः AABA रहता है (पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुकांत समान, तीसरी अलग)। प्रत्येक पंक्ति में वज़्न (छंद) का …
शेर लिखना एक कला है जिसमें केवल दो पंक्तियों में गहरी भावनाएँ, विचार और दर्शन को व्यक्त किया जाता है। यह उर्दू व हिंदी कविता की सबसे सटीक और असरदार विधा मानी जाती है। अच्छे शेर के लिए भाषा की मिठास, लय, तुक, और भावों की गहराई ज़रूरी है। ग़ज़ल के हर शेर की तरह, इसमें भी छंद (वज़्न), काफ़िया और रदीफ़ का ध्यान रखना होता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है — दो पंक्तियों में सम्पूर्ण बात कहना। 2. शेर लिखने के मुख्य चरण (सूची) विषय या भाव चुनना लय और वज़्न का चयन काफ़िया और रदीफ़ तय करना मिसरा-ए-ऊला (पहली पंक्ति) लिखना मिसरा-ए-सानी (दूसरी…
उर्दू और फ़ारसी कविता की दुनिया में “शेर” एक बुनियादी इकाई है। ग़ज़ल, नज़्म या रुबाई जैसी विधाओं में कविता कई शेरों से मिलकर बनती है। एक शेर में केवल दो पंक्तियाँ (मिसरे) होती हैं, लेकिन इन दो पंक्तियों में इतनी गहराई और अर्थ समाए होते हैं कि यह स्वयं में एक संपूर्ण कविता मानी जाती है। सरल शब्दों में, शेर कविता की वह इकाई है, जिसमें भाव, विचार या अनुभव को मात्र दो पंक्तियों में सटीक और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। 2. शेर की संरचना एक शेर के दो हिस्से होते हैं: पहला मिसरा – जिसे मिसरा-ए-ऊला कहते हैं। दूसरा मिसरा – जिसे…
"बहर" का मतलब है — कविता या ग़ज़ल में पंक्तियों की लंबाई और लय को तय करने वाला छंद-विधान । ग़ज़ल में हर शेर के दोनों मिसरे (पंक्तियाँ) एक ही बहर में होने चाहिए। बहर का पालन करने से ग़ज़ल में संगीतात्मकता और तालमेल आता है। बहर अरूज़ के नियमों से तय होती है, जिसमें लंबी और छोटी मात्राओं (लगु-गुरु) का एक पैटर्न होता है। बहर को मात्रा और वज़्न के आधार पर तीन मुख्य वर्गों में बांटा जाता है: बहर-ए-तवील – लंबी बहर (अधिक मात्राएँ, विस्तार के लिए) बहर-ए-वसत – मध्यम बहर (संतुलित) बहर-ए-ख़फ़ीफ़ – छोटी बहर (कम शब्दों …
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